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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार : जन्मजात देशभक्त एवं अदभूत संगठन-शिल्पी

हिन्दू धर्म में वर्ष प्रतिपदा का विशेष महत्व होता है। वर्ष प्रतिपदा यानी वर्ष का पहला दिन। यह तिथि के शुक्ल पक्ष का पहला दिन है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि इसी तिथि को (चैत्र मास की प्रतिपदाको) सृष्टि का प्रारंभ हुआ और इसी दिन से काल गणना का क्रम शुरू हुआ। यथा :

चैत्र मासे जगदब्रह्म समग्रे प्रथमेअनि।

शुक्लपक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।।

                (ब्रह्म पुराण)

वैसे तो इस दिन अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं किंतु उन्नीसवीं सदी में सन 1889 में इस दिन एक विशेष घटना घटित हुई जिसने 20वीं और 21वीं सदी के भारत के इतिहास और सामान्य जनजीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। यह घटना है सन 1889 में चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा के दिन महान देशभक्त और संगठन-शिल्पी डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ।

बालक केशव का जन्म सन 1889 में वर्ष प्रतिपदा के दिन नागपुर में एक साधारण से परिवार में हुआ। पिता का नाम बलिराम पंत और माता का नाम रेवती बाई था। एक अत्यंत साधारण से परिवार में पैदा हुए बालक को देखकर शायद ही उस समय किसी को भान हुआ होगा कि यह बालक आगे चलकर भारत के भविष्य और समाजिक जीवन में एक नई क्रांति का संचार करेगा।

जन्मजात देशभक्त : डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे, इसकी गवाही इनके बचपन की कुछ घटनाएं देती हैं। पहली घटना है 22 जून 1897 की। इस समय बालक केशव की आयु मात्र 8 वर्ष थी। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का जन्म दिन पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा था। मिठाइयां बांटी जा रही थी। स्कूल में एक मिठाई का दोना बालक केशव को भी मिला। किंतु जैसे ही बालक केशव को पता चला कि यह मिठाई ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के जन्म दिन के खुशी में बांटी जा रही है, उन्होंने मिठाई के दोने को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया और कहा, ‘मैं उन्हें अपने देश की महारानी नहीं मानता।’

ऐसी ही एक घटना 1901 में घटी। तब केशव की उम्र 12 वर्ष थी। इंग्लैंड में नए राजा के रूप में एडवर्ड किंग ने अपनी गद्दी संभाली। इस अवसर पर हर जगह उत्सव का आयोजन हो रहा था। नागपुर में एमप्रस मिल परिसर में आतिशबाजी का कार्यक्रम आयोजित हुआ। उस आतिशबाजी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जब साथियों ने बालक केशव से आग्रह किया तो बालक केशव का उत्तर था, ‘एक विदेशी के राजा बनने पर हमें खुशी क्यों मनानी चाहिए?’ और बालक केशव ने आतिशबाजी में शामिल होने के लिए जाने से मना कर दिया।

डॉ. हेडगेवार के बालजीवन की एक और घटना पर ध्यान दिया जाना चाहिए। नागपुर में सीताबार्डी किले पर अंग्रेजों का झंडा यूनियन जैक लहराता रहता था। बालक केशव को यह अच्छा नहीं लगता था। उसकी चाहत थी कि इसके स्थान पर हिंदवी स्वराज का प्रतीक भगवा-ध्वज होना चाहिए। बालक केशव ने इसे कार्यरूप देने के लिए अपने साथी मित्रों के साथ मंत्रणा कर एक योजना बनाई। योजना यह बनी कि सुरंग खोदकर किले तक पहुंचा जाए और वहां पहुंच कर किले से विदेशी ‘यूनियन-जैक’ को उतार कर उसके स्थान पर अपना ‘भगवा-ध्वज’ फहरा दिया जाए। केशव ने अपने साथीयों के साथ मिलकर सुरंग खोदने का काम शुरू भी कर दिया किंतु जब इस घटना की जानकारी बालक केशव के गुरु को हुई तो उन्होंने समझा-बुझा कर केशव को इसे करने से रोका।

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बाल-जीवन की उपरोक्त तीनों घटनाएं सिद्ध करती हैं कि वे एक जन्मजात महान देशभक्त थे।

अद्भुत संगठन शिल्पी : डॉ. हेडगेवार एक अद्भुत संगठन शिल्पी थे। यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है। जबसे डॉक्टर हेडगेवार द्वारा संघ की स्थापना हुई, इस संगठन ने कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा है। और आज यह संगठन (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) केवल भारत का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा अनुशासित सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। संघ के ज्येष्ठ प्रचारक और भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच व ग्राहक पंचायत जैसे दर्जनों संगठनों के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेगड़ी के शब्दों में, ‘डॉक्टर हेडगेवार की संगठन क्षमता अद्भुत है, अतुलनीय है।’ दत्तोपंत ठेंगड़ी कहते हैं, ‘फिर भी यदि समकालीन स्थापित किसी संगठन से संघ की तुलना करना चाहे तो भांरतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को तुलना के लिए ले सकते हैं क्योंकि ये दोनों समकालीन स्थापित संगठन हैं।’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ. हेडगेवार के द्वारा सन 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर हुई और सीपीआई की स्थापना लेनिन के द्वारा 17अक्टूबर 1920 को ताशकंद में हुई। सीपीआई, संघ की तुलना में 5 वर्ष ज्येष्ठ संगठन है। सीपीआई के संस्थापक विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व लेनिन थे जिनका डंका पूरे विश्व में बज रहा था। दूसरी तरफ संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार थे जिनकी प्रसिद्धि पूरे विश्व तो छोडि़ए, अपने प्रांत तक न थी। एक के संगठन कौशल का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी थी, दूसरे की संगठनकर्ता के नाते कोई पहचान नहीं थी। अपने स्थापना से मात्र 5 वर्ष के अंदर 25 दिसंबर 1925 को सीपीआई ने अपना अखिल भारतीय अधिवेशन कानपुर में आयोजित किया जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिनिधि शामिल हुए व इससे सीपीआई को देशव्यापी प्रसिद्धि मिली। दूसरे तरफ संघ की बात करें तो उस समय इसकी प्रसिद्धि देश तो छोडि़ए, आसपास के प्रदेशों को छोड़ दीजिए, अपने प्रांत विदर्भ को भी छोड़ दीजिए, नागपुर जहां इसकी स्थापना हुई थी, उस पूरे नागपुर में भी इसकी प्रसिद्धि नहीं थी। बस नागपुर के दो-तीन मुहल्ले के लोग परिचित थे। और उन परिचितों का भी मानना था कि नागपुर में बहुत से अखाड़े चल रहे, डॉक्टर हेडगेवार द्वारा स्थापित संघ की कुछ शाखाएं भी चल रही हैं, क्या फर्क पड़ता है।

समय बीतता गया। 1950 का दशक आया। साम्यवादियों के लिए यह स्वर्णिमकाल था। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। एक-तिहाई विश्व पर कम्युनिस्टों का राज था। इसके कारण हिंदुस्तान में भी कम्युनिस्टों की प्रतिष्ठा थी। देश का प्रधानमंत्री भी कम्युनिस्टों की सोच से प्रभावित था। इन सब कारणों से इस विचारधारा के प्रति लोगों में विशेषकर युवाओं में बहुत आकर्षण था। कह सकते हैं कि कम्युनिस्टों के लिए अपना कार्य बढ़ाने के लिए अनुकूल परिस्थिति थी। दूसरी तरफ संघ की बात करें तो इस समय काल में संघ भयानक और अन्यायपूर्ण प्रतिबंध से बाहर आया था। संघ की शाखाएं फिर शुरू होने वाली थी। देश का मानस ऐसा था कि हिन्दू संगठन करना दूर की कौड़ी लगती थी। कुछ तथाकथित बड़े लोग तो ऐसे थे, जिन्हें खुद को हिन्दू कहने में शर्म आती थी। स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री खुद को दुर्घटनावश हिन्दू (एक्सीडेंटल हिन्दू) कहता था। ऐसी स्थिति-परिस्थिति में हिंदुओं में स्वाभिमान जगाना और उनका संगठन करना, उस संगठन के लिए जिसने तत्काल की एक भयानक सरकारी प्रतिबंध का सामना किया हो, कितना कठिन होगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में संघ के पास जो भी कोई पूंजी थी जिसके बल पर वह आगे बढ़ सकता था, तो वह थी डॉक्टर हेडगेवार की महान तपस्या और अद्भुत संगठन-शिल्प।

और अब आते हैं वर्तमानकाल पर। आज का परिदृश्य क्या है? दुनिया से कम्युनिस्टों की विदाई हो चुकी है। एक-दो देश जो बचे-खुचे हैं, वहां भी कम्युनिज्म के सिद्धांत व्यवहाररूप में लागू नहीं होते हैं। भारत में भी सीपीआई सहित संपूर्ण कम्युनिस्ट सोच वाले दलों का सूपड़ा साफ हो चुका है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात करें तो डॉक्टर हेडगेवार के संगठन शिल्प पर गठित यह संगठन दुनिया का सबसे बड़ा गैर राजनैतिक संगठन बन चुका है और इसकी विचारधारा से प्रेरित होकर राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है। आज के समय में भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला संगठन संघ है। आज हिन्दू कहना शर्म नहीं गर्व की बात है। एक समय में अपने को एक्सीडेंटल हिन्दू कहने वाले प्रधानमंत्री की वंश परंपरा के उनकी पार्टी के शीर्ष नेता को स्वयं हो सच्चा हिन्दू जताने के लिए कोट के ऊपर से जनेऊ पहने और मंदिर-मंदिर घूम-घूम कर माथा टेकने को विवश होना पड़ता है।