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अमृत काल का ऐतिहासिक बजट
भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट 2022-23 सही मायने में एक संतुलित और सर्वस्पर्शी बजट है। इसमें जहां एक तरफ पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों के अनुरूप कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति का ध्यान रखा गया है, वहीं दूसरी तरफ देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ देश को तेजी से तरक्की व विकास के रास्ते पर अग्रसर करने हेतु बहुत सारे महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। मोहन दास पाई कहते हैं – ‘इस बात में कोई शक नहीं कि यह बजट (2022-23) विकास को सही मायनों में गति देने वाला बजट है।’ हालांकि वे यह भी दोहराते हैं कि इसमें माध्यम वर्ग के लिए थोड़े और प्रावधान किए गए होते तो बेहतर होता।
बजट में जन-सामान्य के लिए काफी सारी चीजें है। ‘हर घर-स्वच्छ जल योजना’के तहत 48 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जिससे 9 करोड़ परिवारों को उनके घर के अंदर नल से स्वच्छ जल उपलब्ध हो सकेगा। ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’के तहत 48 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान कर 80 लाख गरीब परिवारों को मकान उपलब्ध कराने का संकल्प व्यक्त किया गया है। ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ मोदी सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका लक्ष्य हर वंचित परिवार को पक्का छत्त उपलब्ध कराना है। बिजनस टुडे टीवी के प्रबंध-संपादक श्री सिद्धार्थ जराबी के शब्दों में – ‘जनसामान्य हेतु स्वच्छ जल और घर पर किया गया प्रावधान ‘क्वालिटी एक्स्पेंडीचर’ है। इसका जनसामन्य के जीवन-स्तर पर व्यापक एवं दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।’
किसानों के लिए भी बजट काफी उत्साहजनक है। किसानों से एमएसपी पर रेकार्ड खरीददारी की बात कही गई है और ‘केन-बेतवा परियोजना’ जैसे कृषिहित की परियोजना को पूरा करने के लिए विशेष प्रावधान किया गया है जिससे बुंदेलखंड की तस्वीर बादल जाएगी। इस क्षेत्र के सिंचाई और पेयजल दोनों समस्याओं का समाधान हो जाएगा। इस बजट में प्राकृतिक खेती और खेती में ड्रोन तकनीकी को बढ़ावा देने की बात कही गई है। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 2500 किलोमीटर लम्बा और 10 किलोमीटर चौड़ा नेचुरल फार्मिंग कारिडोर विकसित करने की परिकल्पना की गई है। प्राकृतिक खेती के साथ-साथ ‘किसान सम्मान निधि’ के तहत बजट में 68 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जिसका लाभ 11 करोड़ किसानों को प्राप्त होगा। किसानों के लिए फूड और फर्टिलाइजर सेक्टर की सब्सिडी की राशि में भारी भरकम वृद्धि की गई है, इसे बढ़ाकर 79 हजार करोड़ से बढ़ाकर 1 लाख 50 हजार करोड़ करदिया गया है।
इस बजट में कृषि में तकनीक के प्रयोग पर विशेष बल दिया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, – ‘पिछले बजट में हमने किसान रेल और किसान उड़ान की सुविधा सुनिश्चित की थी, वर्तमान बजट में ड्रोन तकनीकी को किसान का साथी बनाने के लिए प्रावधान कर रहे हैं।’ ड्रोन तकनीकी के प्रयोग से खेती की लागत में कमी आएगी। इसके कारण कीटनाशक का प्रयोग करना, फसल की निगरानी करना, जमीन का रिकार्ड रखना और उत्पाद का रियल-टाइम डेटा हासिल करना आसान हो जाएगा।
बजट में कर्मचारीयों का भी ध्यान रखा गया है। उन्हें एनपीएस तहत सौगात प्रदान की गई है। एनपीएस में नियोक्ता के योगदान को बढ़ाकर 10 प्रतिशत से 14 प्रतिशत कर दिया गया है। ज्ञात हो कि केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को पहले से ही 14 प्रतिशत की टैक्स डिडक्शन लिमिट का लाभ प्राप्त हो रहा था। केंद्र द्वारा यह महत्वपूर्ण कदम केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के मध्य एनपीएस कटौती के मामले में समानता लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। इससे कर्मचरियों की सोशल सिक्योरिटी में वृद्धि होगी। हालांकि निजी क्षेत्र में नियोक्ता कटौती का दर अभी भी 10 प्रतिशत बना रहेगा।
बजट में डिजिटल यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ साथ स्कूली शिक्षा को सुदृढ़ करने हेतु कक्षा 1 से लेकर 12 तक क्षेत्रीय भाषाओं में पूरक शिक्षा देने हेतु टीवी चैनलों की संख्या 12 से बढ़ाकर 200 करने की बात की गई है। अब राज्यों को उनके कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम संशोधित करने हेतु केंद्र सरकार प्रोत्साहन राशि भी देगी ताकि जीरो बजट और प्राकृतिक खेती के साथ खेती के आधुनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
इस बजट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भले ही यह एक वर्ष के आय-व्यय का विवरण है किंतु सरकार की निगाहें भविष्य में भारत को एक विकसित भव्य राष्ट्र के रूप में स्थापित करने पर टिकी हुई हैं, यह बजट इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। इसीलिए वित्त मंत्री ने इसे अमृत काल का बजट कहते हुए इसे फ्यूचरिस्टिक बजट की संज्ञा दी है। अमृत काल, इस वर्ष आजादी के अमृत वर्ष 2022 से प्रारम्भ हो कर अगले 25 वर्षों तक चलेगा। इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कैपिटल एक्स्पेंडिचर में भारी-भरकम वृद्धि।
पूंजीगत व्यय में 35.4 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि की गई है। पूंजीगत व्यय वह होता है जो देश में बुनियादी सुविधाओं पर खर्च किया जाता है। कैपिटल एक्स्पेंडिचर में ऐतिहासिक वृद्धि से देश के भावी विकास और उसके रफ्तार को बल मिलेगा। स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक और दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर अश्वनी महाजन के अनुसार, – ‘वर्तमान बजट में 7 लाख 50 हजार करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत व्यय के लिए किया गया है जो वर्तमान बजट का 19 प्रतिशत है।’ वे आगे यह दुहराते हैं, -‘पिछले 30 वर्षों में पूंजीगत व्यय के लिए किया गया यह सबसे बड़ा प्रावधान है।’ बिजनस टुडे टीवी के प्रबंध-सम्पादक श्री सिद्धार्थ जराबी भी इसे वर्तमान बजट की बड़ी उपलब्धि मानते है। वे मानते हैं कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
तकनीकी प्रधान इस युग में तकनीक के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। मुद्रा के नए रूपों पर ध्यान देते हुए भारत अब अपनी डिजिटल करेंसी देने की ओर बढ़ चुका है। जल्दी ही हम 5जी की नीलामी भी करेंगे, इसका भी इस बजट में उल्लेख है।
बहुत लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो परंपरा के अनुसार सरकार इस वर्ष चुनावी बजट ही देगी। दुर्भाग्य यह है कि चुनावी बजट का अभिप्राय भारत में सरकार के लिए त्वरित लाभ देने वाला लोकलुभावन बजट होकर रह गया है। समझा जाता है कि ऐसे समय में कोई दूरदर्शिता पूर्ण कदम उठाने या दीर्घकालिक लाभ पहुंचाने की बात सोचने के बजाय केवल वोटों की फसल काटने पर ध्यान केंद्रित किया जाए। लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसे सस्ते किस्म के फैसलों के बजाय दूरदर्शिता का परिचय देते हुए एक सर्वस्पर्शी बजट दिया है। एक ऐसा बजट जिसने जन और देश की आवश्यकताओं को टुकड़े-टुकड़े में बांटने की जगह समग्रता में समझा है और देश की अभी तक अनछुई रह गई कई समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस और व्यापक कदम उठाए हैं।
देश कोरोना महामारी के दो-दो भयंकर दौर से गुजारा है और वर्तमान में कोरोना के तीसरे दौर ओमिक्रॉन के संक्रमण से गुजर रहा है किंतु आश्चर्य यह है कि अर्थव्यवस्था के सूचकांकों को देखने पर कही से नहीं लगता कि देश इस कारण से अन्य राष्ट्रों के तुलना में विकास की दौड़ में पिछड़ा है। आईएमएफ के अनुसार भारत की जीडीपी 9 प्रतिशत है जो विश्व में सर्वाधिक है। आईएमएफ के अनुसार भारत दुनिया का सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। मोदी सरकार के पूर्व भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 270 बिलियन डालर था जो की वर्तमान में 233 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 635 बिलियन डॉलर हो गया है। निर्यात में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी अपने उच्चतम स्तर पर है जो कि यह प्रदर्शित करता है कि विदेशी निवेशक भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के संभावनाओं पर अपनी मुहर लगा रहे हैं।
घरेलू मोर्चे की बात करें तो जीएसटी संग्रह पिछले दिसंबर में 133 हजार करोड़ और जनवरी में 140 हजार करोड़ रहा है। सामान्यतया 100 हजार करोड़ का जीएसटी कलेक्शन संतोषजनक माना जाता है। यह भारी भरकम जीएसटी प्राप्तियां दिखती हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापार और उद्योग जगत तेजी से उठाव की ओर अग्रसर है। इनकम टैक्स कलेक्शन में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जिससे पता चलता है व्यक्ति व संस्थाओं की आय में वृद्धि हुई है।
यह मोदी सरकार की दूरदर्शी आर्थिक नीतियों का परिणाम है कि परिस्थितिजन्य चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में इतने सकारात्मक लक्षण दृष्टिगोचर हो रहे हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि यह बजट, अमृतकाल का ऐतिहासिक बजट है।
भारतीय काल गणना का इतिहास
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (2 अप्रैल 2022) से भारतीय नव वर्ष आरम्भ हो रहा है। भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र महीना अत्यंत विशेष होता है क्योंकि यह माह भारतीय नववर्ष का पहला महीना होता है। चैत्र माह से भारतीय नववर्ष आरंभ हो जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारतीय नववर्ष का पहला दिन माना जाता है। भारतीय काल गणना पद्धति पर आधारित कई सम्वत् (कैलेंडेर वर्ष) भारत में प्रचलित है जिसमें सृष्टि सम्वत, विक्रम सम्वत, शक सम्वत् और गुप्त सम्वत् विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सृष्टि सम्वत् के मान्यता के अनुसार सृष्टि का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल 1, रविवार को हुआ। इस दिन के पहले ‘होरा’ का स्वामी सूर्य था, उसके बाद के दिन के प्रथम होरा का स्वामी चन्द्रमा था। इसलिये रविवार के बाद सोमवार आया। इस प्रकार सातों वारों के नाम सात ग्रहों पर रखा गया। बाद में पश्चिमी देशों ने हमारी पौराणिक संगणना को मान्य किया किन्तु वे उसमें चतुरता पूर्वक अपने पुट मिलाते हुए उसे अपना नाम देते और अपना आविष्कार बताते चले गए।
स्वतंत्रता के पश्चात भारतवर्ष ने शक सम्वत् को अपने राष्ट्रीय सम्वत् के रूप में अंगीकार किया। अंग्रेजों के भारत में आगमन के पूर्व भारत में अपनी काल गणना पद्धति के ही आधार पर दिन, तिथियों और महीनों आदि का निर्धारण किया जाता था और उसी का उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता था।
भारतीय काल गणना पद्धति विश्व की सबसे सटीक एवं विस्तृत काल गणना पद्धति है। साथ ही यह सबसे प्राचीनतम पद्धति भी है। पश्चिमी देशों के लोग जिस समय 1000 से ऊपर गिनती गिनना नहीं जानते थे, भारतीय ऋषियों को काल की गणना करने की कई पद्धतियों का ज्ञान था। यह गणना पद्धति इतनी सटीक थी कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय निर्धारण से लेकर चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण तक के समय के गणना में कोई त्रुटि नहीं होती थी। यही नहीं हमारे ऋषियों को पृथ्वी से सूर्य और चंद्र की दूरी का ठीक-ठीक ज्ञान था जो आज के पश्चिमी गणना पद्धति से निकाले गए पृथ्वी से सूर्य और चंद्र के दूरी के बराबर बैठता है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है। इसका अनुसंधान पश्चिमी जगत द्वारा 20वीं शताब्दी में हुआ है किन्तु 1 भारतीय ऋषियों ने इसकी गणना बहुत पहले कर ली थी। 16वीं शताब्दी के सन्त गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा के 18वीं चौपाई में पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का सटीक वर्णन है।
हनुमान चालीसा की वह चौपाई निम्नवत है –
जुग सहस्र योजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
अर्थात हनुमान जी ने एक सहस्र योजन पर स्थित भानु (सूर्य) को मीठा फल समझ कर निगल लिया। उपर्युक्त दोहे के प्रत्येक शब्द में छुपे वैदिक गणित को निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
जुग (युग) = 12000 वर्ष
एक सहस्र = 1000
एक योजन = 8 मील इसलिए धरती से सूर्य की दूरी = 12000*1000*8 = 96000000 मील
चूंकि 1 मील = 1.6 कि.मी.
इसलिए पृथ्वी से सूर्य की दूरी = 96000000*1.6= 153600000 किमी.।
आधुनिक विज्ञान भी पृथ्वी से सूर्य की दूरी इतनी ही मानता है।
सामान्यतया बहुत से लोगो के मध्य यह मिथ्या धारणा होती है कि भारतीय काल गणना पद्धति त्रुटिपूर्ण होती है, या यह पद्धति काल गणना में इतनी अचूक नहीं होती जितनी की पश्चिमी काल गणना पद्धति।
जबकि वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। भारतीय काल गणना की विशेषता ही यह है कि यह अचूक एवं अत्यंत सूक्ष्म है,
जिसमें ‘त्रुटी’ (समय गणना के सहारे छोटी इकाई) से लेकर प्रलय तक की काल गणना का प्रावधान है।
ऐसी सूक्ष्म काल गणना विश्व के किसी और सभ्यता में नहीं मिलती, चाहे आप कितना भी गहन अन्वेषण कर लीजिये। भारतीय मान्यता के अनुसार भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम एवं अपौरशेय ग्रंथों में से एक ‘सूर्य सिद्धांत’ में काल के दो रूप बताये गए हैं –
- अमूर्त काल : ऐसा सूक्ष्म समय जिसको न तो देखा जा सकता है और न ही उसकी गणना सामान्य तरीकों से की जा सकती हैं। ऐसे सूक्ष्म समय को इन सामान्य इन्द्रियों से अनुभव भी नहीं किया जा सकता।
- मूर्त काल : अर्थात ऐसा समय जिसकी गणना संभव है एवं उसको देखा और अनुभव किया जा सकता है।
भारत में काल गणना की अनेक पद्धतियां प्रचलित रही हैं जिसमें ‘सूर्य सिद्धांत’ सबसे प्राचीन पद्धति मानी जाती है। इस सिद्धांत की व्याख्या करने हेतु ‘सूर्य सिद्धांत’ नामक ग्रंथ की रचना की गई। यह अत्यंत प्राचीन ग्रंथ है। समय-समय पर इसमें संशोधन एवं परिवर्तन भी होते रहे हैं। अंतिम बार इसको भास्कराचार्य द्वितीय ने इसका वर्तमान स्वरुप दिया होगा ऐसा विद्वानों का मानना है। तो आइये काल गणना के इस सूर्य सिद्धांत को और समझते हैं। इसमें काल गणना की मूल इकाई को ‘त्रुटी’ नाम दिया गया है जो 0.0000001929 सेकेण्ड के समान होती है अर्थात समय की इस छोटी इकाई ‘त्रुटी’ के माध्यम से सेकेण्ड के करोड़ वें हिस्से तक की सटीक गणना की जा सकती है। त्रुटी से ‘प्राण’ तक का समय अमूर्त एवं उसके बाद का समय मूर्त कहलाता है।
अर्थात 8 अरब 64 करोड़ वर्ष का एक सृष्टि चक्र होता है। किन्तु ये मनुष्यों का सृष्टि चक्र है। काल गणना के अनुसार, इस ब्रह्माण्ड में बहुत सी दूसरी योनियां हैं जिनका सृष्टि चक्र अलग है। इसके आगे ब्रह्मा के 360 अहोरात्र ब्रह्मा जी के 1 वर्ष के बराबर होते हैं और उनके 100 वर्ष पूरे होने पर इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के महाप्रलय का समय आ जाता है तब सर्वत्र महाकाल ही विराजते हैं, काल का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता।
महर्षि नारद की गणना
महर्षि नारद की गणना इससे भी सूक्ष्म है। नारद संहिता के अनुसार ‘लग्न काल’ त्रुटी का भी हजारवां भाग है अर्थात 1 लग्न काल, 1 सेकेण्ड के 32 अरब वें भाग के बराबर होगा। इसकी सूक्ष्मता के बारे में उनका कहना है कि स्वयं ब्रह्मा भी इसे अनुभव नहीं करते तो साधारण मनुष्य कि बात ही क्या। तो इन सबसे सहज ही अनुमान लगता है कि प्राचीन काल में भारतीय काल गणना कितनी सूक्ष्म थी। वर्तमान समय में वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग पद्धति के आधार पर हमारी पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष बताते हैं और आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय काल गणना पद्धति से भी पृथ्वी की आयु इतनी ही निकलती है। हमारी काल गणना पद्धति वैज्ञानिक और व्यावहारिक दोनों आधारों पर पूर्णत: खरी उतरती है। किंतु दुर्भाग्य से हम अपनी श्रेष्ठ काल गणना पद्धति को भूलते जा रहे हैं। आज हम समय की गडऩा अंग्रेजी पद्धति से करने लगे हैं। हम समय को गिनते हैं – सेकेण्डस में, मिनट्स में, आवर्स में। हम महीनों को जनवरी, फरवरी, मार्च आदि में गिनते हैं। हम महीनों को चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रवण आदि में गिनना भूल गए हैं। घरों में भी हम अंग्रेजी कलेंडेर ही दिवारों पर लटकाते हैं। हम में से बहुतों को प्रतीत होता है कि अंग्रेजी कैलेंडेर बहुत ही वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है जबकि यह बात वास्तविकता से कोसों दूर है। प्रारम्भ में तो अंग्रेजी/पश्चिमी कलेंडेर में मात्र 10 महीने होते थे। मार्च से लेकर दिसम्बर तक। इस बात की गवाही इन अंग्रेजी महीनों के नाम स्वयं देते हैं। सितम्बर में रोमन शब्द सेप्ट प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ होता है –सेवन (7), सात। अक्टूबर में ऑक्ट शब्द, ऐट (8), आठ के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार नवम्बर याने 9 वां महीना और डिसेम्बर यानि 10 वां महीना। बाद में जब पश्चिम को पता चला कि उनकी वर्ष की गणना पद्धति अवैज्ञानिक है तो उन्होंने इसमें जनवरी और फरवरी दो महीने और जोड़कर भारतीयों की तरह अपने वर्ष में 12 महीने बना लिए।
पहले पश्चिमी जगत यह मानता था कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है। पहली बार पोलैंड के वैज्ञानिक कॉपरनिकस ने 16वीं शताब्दी में पश्चिम को यह बताया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। जबकि भारतीय ऋषियों को यह बात कॉपरनिकस के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व से ज्ञात थी। प्राचीन भारतीय ग्रन्थ ‘सतपथ ब्राह्मण’ में इस बात का उल्लेख है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और परिक्रमा करते समय वह अपने अक्ष पर भी घूमती रहती है। आर्यभट्ट ने भी कहा है कि पृथ्वीअपनी घुरी पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती है। भारतीय मनीषियों को यह विदित था कि पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण दिन और रात होते हैं। तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य का परिक्रमा करने के कारण मौसम में परिवर्तन होता है। संक्षेप में, भारतीय काल गणना पद्धति अत्यन्त प्राचीन, विशद् एवं वैज्ञानिक है। दुर्भाग्य से हम लंबी गुलामी एवं पश्चिमी प्रभाव के कारण अपनी उपलब्धियों को विस्मृत कर चुके हैं। आवश्यकता है अपने उपलब्धियों को जानने की और उनका अनुपालन करने की।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार : जन्मजात देशभक्त एवं अदभूत संगठन-शिल्पी
हिन्दू धर्म में वर्ष प्रतिपदा का विशेष महत्व होता है। वर्ष प्रतिपदा यानी वर्ष का पहला दिन। यह तिथि के शुक्ल पक्ष का पहला दिन है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि इसी तिथि को (चैत्र मास की प्रतिपदाको) सृष्टि का प्रारंभ हुआ और इसी दिन से काल गणना का क्रम शुरू हुआ। यथा :
चैत्र मासे जगदब्रह्म समग्रे प्रथमेअनि।
शुक्लपक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।।
(ब्रह्म पुराण)
वैसे तो इस दिन अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं किंतु उन्नीसवीं सदी में सन 1889 में इस दिन एक विशेष घटना घटित हुई जिसने 20वीं और 21वीं सदी के भारत के इतिहास और सामान्य जनजीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। यह घटना है सन 1889 में चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा के दिन महान देशभक्त और संगठन-शिल्पी डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ।
बालक केशव का जन्म सन 1889 में वर्ष प्रतिपदा के दिन नागपुर में एक साधारण से परिवार में हुआ। पिता का नाम बलिराम पंत और माता का नाम रेवती बाई था। एक अत्यंत साधारण से परिवार में पैदा हुए बालक को देखकर शायद ही उस समय किसी को भान हुआ होगा कि यह बालक आगे चलकर भारत के भविष्य और समाजिक जीवन में एक नई क्रांति का संचार करेगा।
जन्मजात देशभक्त : डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे, इसकी गवाही इनके बचपन की कुछ घटनाएं देती हैं। पहली घटना है 22 जून 1897 की। इस समय बालक केशव की आयु मात्र 8 वर्ष थी। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का जन्म दिन पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा था। मिठाइयां बांटी जा रही थी। स्कूल में एक मिठाई का दोना बालक केशव को भी मिला। किंतु जैसे ही बालक केशव को पता चला कि यह मिठाई ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के जन्म दिन के खुशी में बांटी जा रही है, उन्होंने मिठाई के दोने को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया और कहा, ‘मैं उन्हें अपने देश की महारानी नहीं मानता।’
ऐसी ही एक घटना 1901 में घटी। तब केशव की उम्र 12 वर्ष थी। इंग्लैंड में नए राजा के रूप में एडवर्ड किंग ने अपनी गद्दी संभाली। इस अवसर पर हर जगह उत्सव का आयोजन हो रहा था। नागपुर में एमप्रस मिल परिसर में आतिशबाजी का कार्यक्रम आयोजित हुआ। उस आतिशबाजी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जब साथियों ने बालक केशव से आग्रह किया तो बालक केशव का उत्तर था, ‘एक विदेशी के राजा बनने पर हमें खुशी क्यों मनानी चाहिए?’ और बालक केशव ने आतिशबाजी में शामिल होने के लिए जाने से मना कर दिया।
डॉ. हेडगेवार के बालजीवन की एक और घटना पर ध्यान दिया जाना चाहिए। नागपुर में सीताबार्डी किले पर अंग्रेजों का झंडा यूनियन जैक लहराता रहता था। बालक केशव को यह अच्छा नहीं लगता था। उसकी चाहत थी कि इसके स्थान पर हिंदवी स्वराज का प्रतीक भगवा-ध्वज होना चाहिए। बालक केशव ने इसे कार्यरूप देने के लिए अपने साथी मित्रों के साथ मंत्रणा कर एक योजना बनाई। योजना यह बनी कि सुरंग खोदकर किले तक पहुंचा जाए और वहां पहुंच कर किले से विदेशी ‘यूनियन-जैक’ को उतार कर उसके स्थान पर अपना ‘भगवा-ध्वज’ फहरा दिया जाए। केशव ने अपने साथीयों के साथ मिलकर सुरंग खोदने का काम शुरू भी कर दिया किंतु जब इस घटना की जानकारी बालक केशव के गुरु को हुई तो उन्होंने समझा-बुझा कर केशव को इसे करने से रोका।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बाल-जीवन की उपरोक्त तीनों घटनाएं सिद्ध करती हैं कि वे एक जन्मजात महान देशभक्त थे।
अद्भुत संगठन शिल्पी : डॉ. हेडगेवार एक अद्भुत संगठन शिल्पी थे। यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है। जबसे डॉक्टर हेडगेवार द्वारा संघ की स्थापना हुई, इस संगठन ने कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा है। और आज यह संगठन (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) केवल भारत का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा अनुशासित सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। संघ के ज्येष्ठ प्रचारक और भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच व ग्राहक पंचायत जैसे दर्जनों संगठनों के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेगड़ी के शब्दों में, ‘डॉक्टर हेडगेवार की संगठन क्षमता अद्भुत है, अतुलनीय है।’ दत्तोपंत ठेंगड़ी कहते हैं, ‘फिर भी यदि समकालीन स्थापित किसी संगठन से संघ की तुलना करना चाहे तो भांरतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को तुलना के लिए ले सकते हैं क्योंकि ये दोनों समकालीन स्थापित संगठन हैं।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ. हेडगेवार के द्वारा सन 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर हुई और सीपीआई की स्थापना लेनिन के द्वारा 17अक्टूबर 1920 को ताशकंद में हुई। सीपीआई, संघ की तुलना में 5 वर्ष ज्येष्ठ संगठन है। सीपीआई के संस्थापक विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व लेनिन थे जिनका डंका पूरे विश्व में बज रहा था। दूसरी तरफ संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार थे जिनकी प्रसिद्धि पूरे विश्व तो छोडि़ए, अपने प्रांत तक न थी। एक के संगठन कौशल का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी थी, दूसरे की संगठनकर्ता के नाते कोई पहचान नहीं थी। अपने स्थापना से मात्र 5 वर्ष के अंदर 25 दिसंबर 1925 को सीपीआई ने अपना अखिल भारतीय अधिवेशन कानपुर में आयोजित किया जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिनिधि शामिल हुए व इससे सीपीआई को देशव्यापी प्रसिद्धि मिली। दूसरे तरफ संघ की बात करें तो उस समय इसकी प्रसिद्धि देश तो छोडि़ए, आसपास के प्रदेशों को छोड़ दीजिए, अपने प्रांत विदर्भ को भी छोड़ दीजिए, नागपुर जहां इसकी स्थापना हुई थी, उस पूरे नागपुर में भी इसकी प्रसिद्धि नहीं थी। बस नागपुर के दो-तीन मुहल्ले के लोग परिचित थे। और उन परिचितों का भी मानना था कि नागपुर में बहुत से अखाड़े चल रहे, डॉक्टर हेडगेवार द्वारा स्थापित संघ की कुछ शाखाएं भी चल रही हैं, क्या फर्क पड़ता है।
समय बीतता गया। 1950 का दशक आया। साम्यवादियों के लिए यह स्वर्णिमकाल था। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। एक-तिहाई विश्व पर कम्युनिस्टों का राज था। इसके कारण हिंदुस्तान में भी कम्युनिस्टों की प्रतिष्ठा थी। देश का प्रधानमंत्री भी कम्युनिस्टों की सोच से प्रभावित था। इन सब कारणों से इस विचारधारा के प्रति लोगों में विशेषकर युवाओं में बहुत आकर्षण था। कह सकते हैं कि कम्युनिस्टों के लिए अपना कार्य बढ़ाने के लिए अनुकूल परिस्थिति थी। दूसरी तरफ संघ की बात करें तो इस समय काल में संघ भयानक और अन्यायपूर्ण प्रतिबंध से बाहर आया था। संघ की शाखाएं फिर शुरू होने वाली थी। देश का मानस ऐसा था कि हिन्दू संगठन करना दूर की कौड़ी लगती थी। कुछ तथाकथित बड़े लोग तो ऐसे थे, जिन्हें खुद को हिन्दू कहने में शर्म आती थी। स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री खुद को दुर्घटनावश हिन्दू (एक्सीडेंटल हिन्दू) कहता था। ऐसी स्थिति-परिस्थिति में हिंदुओं में स्वाभिमान जगाना और उनका संगठन करना, उस संगठन के लिए जिसने तत्काल की एक भयानक सरकारी प्रतिबंध का सामना किया हो, कितना कठिन होगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में संघ के पास जो भी कोई पूंजी थी जिसके बल पर वह आगे बढ़ सकता था, तो वह थी डॉक्टर हेडगेवार की महान तपस्या और अद्भुत संगठन-शिल्प।
और अब आते हैं वर्तमानकाल पर। आज का परिदृश्य क्या है? दुनिया से कम्युनिस्टों की विदाई हो चुकी है। एक-दो देश जो बचे-खुचे हैं, वहां भी कम्युनिज्म के सिद्धांत व्यवहाररूप में लागू नहीं होते हैं। भारत में भी सीपीआई सहित संपूर्ण कम्युनिस्ट सोच वाले दलों का सूपड़ा साफ हो चुका है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात करें तो डॉक्टर हेडगेवार के संगठन शिल्प पर गठित यह संगठन दुनिया का सबसे बड़ा गैर राजनैतिक संगठन बन चुका है और इसकी विचारधारा से प्रेरित होकर राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है। आज के समय में भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला संगठन संघ है। आज हिन्दू कहना शर्म नहीं गर्व की बात है। एक समय में अपने को एक्सीडेंटल हिन्दू कहने वाले प्रधानमंत्री की वंश परंपरा के उनकी पार्टी के शीर्ष नेता को स्वयं हो सच्चा हिन्दू जताने के लिए कोट के ऊपर से जनेऊ पहने और मंदिर-मंदिर घूम-घूम कर माथा टेकने को विवश होना पड़ता है।